आखिर ऐसा क्या है kohinoor में जो ये बार-बार सुर्खियों में आता रहता है| हाल ही में भारतीय मूल के ब्रिटिश संसद ने इस कोहिनूर को अपनी सरकार से इसे भारत को लौटाने का आग्रह किया है| जिससे यह हीरा एक बार फिर सुर्ख़ियो में आ गया| तो देखते है कि किया है इस अनमोल हीरे कहानी-
kohinoor का अर्थ है ”रोशनी का पहाड़”, ऐसा देखा गया है की यह हीरा जिस किसी के पास भी रहता है, वो पूरी तरह से बर्बाद हो जाता है| इस हीरे की वजह से न जाने कितने राजाओ ने पहले तो अपना साम्राज्य बनाया फिर वो धीरे-धीरे बर्बाद हो गये| आज के समय में यह हीरा ब्रिटियन की रानी के राजमुकुट में स्थापित है|
कोहिनूर का इतिहास(History of kohinoor Diamond)
आंध्रप्रदेश की गोलकुंडा खदानों से मिला ये हीरा जिसने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया| लेकिन यह खदान से कब बहार आया जिसका इतिहास में कोई जिक्र नहीं है| एक अन्य लेख के हिसाब से कोहिनूर हीरा नदी के तल में 3200 ई.पू. के करीब मिला था| गोलकुंडा की खदानों से सिर्फ कोहिनूर ही नही बल्कि निज़ाम हीरा, मुग़ल हीरा, ओर्लोव हीरा और न जाने कितने बेश कीमती हीरे निकले है|
सबसे पहले यह हीरा 1302 में चर्चा आया जब इसे धारण करने वाले सख्श ने बताया की जो भी इसे धारण करेगा| वो इस संसार पर राज तो करेगा पर साथ ही उसका दुर्भाग्य भी शुरू हो जाएगा|
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मुग़ल साम्राज्य की दरोहर था kohinoor
सबसे पहले हीरे का जिक्र मुग़ल सम्राट बाबर ने अपनी “बाबरनामा” में किया था| बाबर ने अपनी आत्मकथा में बताया की कैसे यह हीरा उसके पुत्र हुमायु ने उसे उपहार में दिया| बाबरनामा में बाबर ने लिखा की हुमांयू ने कैसे पानीपत की लड़ाई में सुल्तान इब्राहिम लोदी को हरा कर आगरा किले की सारी दौलत अपने नाम कर ली थी| फिर हुमांयू को ग्वालियर के राजा ने एक बहुत खूबसूरत और बड़ा हीरा दिया| जिसे उसने अपने पिता को दे दिया|
बाबर ने अपने पोते शाहजहां के लिए 17वी शताब्दी में एक सिंहासन बनवाया| जिसे बनने में तक़रीबन 7 साल तक का समय लगा| उस सिंहासन में कई किलो सोना लगा हुआ था न जाने कितने जवाहरातो का प्रयोग किया गया था| उसी सिंहासन में बाबर के हीरे को भी मढवा दिया गया था| जिस सिंहासन नाम “तख़्त-ए-मुरस्सा” रखा गया| बाद में यह सिंहासन “मयूर सिंहासन” के नाम से प्रचलित हो गया|
उसके बाद सम्राट औरंगज़ेब ने इस हीरे की सुंदरता को और ज्यादा निखारने के लिये, इसे बोर्ज़िया दे दिया| जिससे यह हीरा काम करने के दौरान टूट गया| जिससे 793 कैरेट का हीरा मात्र 186 कैरेट का रह गया|
नाम किसने रखा?
1739 में फरसा के नादिर शाह ने दिल्ली पर अपना परचम लहराया तो उसे सैनिक पूरी दिल्ली को लूट कर कत्ले आम करने लगे| जिसे रोकने के लिये मुग़ल सम्राट ने अपने राज कोष में से लाखो जवाहरात दिये| जिसमे यह हीरा भी सम्मलित था| ऐसे माना जाता है की नादिर शाह ने ही इस हीरे का नाम कोहिनूर(kohinoor) यानि रोशनी का पहाड़ रखा|
जिसको नादिर शाह ले गया और करीब 1747 में नादिर शाह की हत्या उसके अपने लोगो ने ही कर दी| जिसके बाद कोहिनूर उसके पोते शाह रुख मिर्ज़ा के पास आ गया| शाह रुख मिर्ज़ा की आयु मात्र 14 वर्ष थी जिसकी मदद नादिर शाह के बहादुर सेनापति अहमद अब्दाली ने की थी| तो बाद में अहमद अब्दाली को यह हीरा शाह रुख मिर्ज़ा ने भेंट स्वरुप सौंप दिया|
कैसे पंहुचा अफगानिस्तान
अहमद अब्दाली कोहिनूर को लेकर अफगानिस्तान चला गया| जिसके बाद यह हीरा अहमद अब्दाली के वंशज की दारोहर हो गया| अहमद अब्दाली का वंशज सुजा शाह जब लाहौर पंहुचा तो यह हीरा उस समय उसके पास था|
उस समय पंजाब के शासक राजा रणजीत सिंह थे| जब कोहिनूर की बात उनको पता चली की वह सुजा शाह के पास है तो 1813 में राजा रणजीत सिंह ने सुजा को मना कर कोहिनूर अपने कब्जे में ले लिया|
अहमद शाह दुर्रानी का बीटा सुजा शाह जब लाहौर की जेल में था| तो सिख राजा रणजीत सिंह के उसके परिवार को जब तक भूखा प्यासा रख कर तड़पाया जब तक सुजा ने कोहिनूर रणजीत सिंह के हवाले नहीं कर दिया|
कैसे पंहुचा ब्रिटैन
जब अंग्रेजी हुकूमत ने सीखो को हराया तो kohinoor हीरा 1849 में ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथ लग गया| तो भारत के वायसराय डलहौजी ने इसे अपने आस्तीन में छिपा कर लंदन के लिए रवाना हो गए| लंदन पहुंच कर वायसराय डलहौजी ने यह हीरा कोहिनूर कंपनी के डायरेक्टर को उपहार स्वरुप भेंट कर दिया|
कंपनी के डायरेक्टर ने 1850 में फैसला लिया की ये हीरा बहुत कीमती है तो इसे रानी विक्टोरिया को दे दिया जाये और उनसे थोड़ी सी सद्भाव कर ली जाये क्युकी यह हीरा कंपनी के किसी भी काम में इस्तेमाल नहीं हुआ था| तो बाद में यह हीरा रानी विक्टोरिया के ताज में जड़वा दिया गया|


केवल महिला ही धारण कर सकती है इस कोहिनूर को-
जब महारानी विक्टोरिया को इस हीरे के श्रापित होने की बात पता लगी| तो उन्होंने 1852 में इसे अपने ताज में जड़वा कर पहन लिया और कहा की इस ताज को हमेशा महिला ही पहनेगी| अगर कोई पुरुष शासक बनेगा तो उसकी पत्नी इस ताज को पहनेगी| ऐसा करने से भी इस हीरे के श्राप का असर काम जरूर हुआ पर ख़त्म नहीं|
महाभारत के समय में भी था Kohinoor
ऐसा माना जाता है की kohinoor 5000 साल पहले महाभारत के समय में भी था| यह हीरा मालवा के राजा सत्रजीत के पास था| सत्रजीत श्री कृष्ण की पत्नी सत्याभामा के पिता थे|
जब यह मणि पहनकर राजा का भाई जंगल में चला गया तो उसे और उसके घोड़े पर एक शेर ने हमला कर दिया और वो मणि लेकर वहाँ से चला गया| उस सिंह को मारकर मणि जामवंत ने ले लिया और अपनी पुत्री को खेलने के लिए दे दिया| जब श्री कृष्णा उस मणि को ढूंढते-ढूंढते जामवंत जी की गुफा के पास आ गए| श्री कृष्ण को देख कर जामवंत जी युद्ध के लिए तैयार हो गए| युद्ध में श्री कृष्ण को हरा न सके| तो उन्हें ख्याल आया की यह वही अवतार तो नहीं जिसके लिए श्री राम ने उन्हें वरदान दिया था| इसकी पुष्टि होने के पश्च्यात जामवंत ने अपनी पुत्री की शादी श्री कृष्ण से करा कर मणि दहेज़ स्वरुप उन्हें दे दी|
जब श्री कृष्ण इस मणि को लेकर राजा सत्रजीत के पास गए तो उन्होंने यह मणि श्री कृष्ण को दे दी| जब श्री कृष्ण ने कहा था की इस मणि को केवल संयमी व्यक्ति ही धारण कर सकता है| फिर इसके बाद यह मणि श्री कृष्ण ने अक्रूरजी को देदी| इसके बाद मणि का किया हुआ इसका उल्लेख कही नहीं है|
Kohinoor की कीमत
इतिहास में आज तक कभी भी kohinoor हीरा बिका नहीं| यह हीरा एक राजा से दूसरे राजा को सोप दिया गया या तो हड़प लिया गया| हुमायूं ने जब इस हीरे की कीमत का पता लगाना चाहा तो बाबर ने उसे कहा था, की ऐसी अनमोल वस्तु की कीमत लठ होती है| जिसके हाथ भारी होंगे यह लठ भी उसी के पास होगा|
आज से करीब 62 साल पहले हांगकांग में ग्रप पिंक हीरा 46 मिलियन डॉलर में बिका था| जो की सिर्फ 24.7 कैरेट का था| तो इससे आप खुद अंदाजा लगा सकते है की यह 105.6 कैरेट का हीरा कितना महँगा हो सकता है|
अब किसके पास है यह हीरा
इस समय यह हीरा ब्रिटेन के राजपरिवार के पास है| लंदन में टेम्स नदी के पास बना लंदन टॉवर किला जिसे 1078 में विलियम द कॉकरर ने बनवाया था| इस किले में राजपरिवार रहता तो नहीं है पर इसमें उनके सारे गहने सुरक्षित रखे गए है| जिसमे kohinoor भी है|
राजपरिवार के हाल भी किसी से छिपे नहीं, अकाल मौत, बदनामी के कई दौर हुए| जो मन जाता है की इस श्रापित हीरे की वजह से हुआ था|
भारत सहित अन्य देशो ने भी इस पर अपना हक जताया
1947 आजादी मिलने के 6 साल बाद 1953 में भारत ने इस हीरे को वापिस करने की मांग की जिसे इंग्लैंड ने नकार दिया|
1976 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने ब्रिटिश के प्रधानमंत्री को इस हीरे को उन्हें लौटने की बात की जिसे भी नकार दिया गया|
इसके आलावा ईरान, अफगानिस्तान और तालिबान ने भी इस हीरे पर अपना दवा पेश किया है|
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